खबर इंडिया नेटवर्क, वर्णिता। अगर कोर्इ आम पार्टी होती तो रास्ता साफ हो सकता था पर ये आम आदमी पार्टी है तो कोहरे के बादल तो छाने ही थे।
4 दिसम्बर को दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के धमाकेदार नतीजों ने कांग्रेस का पत्ता तो साफ किया ही साथ ही बीजेपी के कमल को भी खिलने नही दिया।अपने पहले ही चुनाव में 28 सीटों पर कब्जा करने वाली आम आदमी पार्टी पर आज धर्मसंकट के बादल मंडरा रहे है। पार्टी को अब ये तय करना है कि क्या वह कांग्रेस के सर्मथन से सरकार बनाए या फिर दोबारा चुनाव होने दे। पार्टी के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने लाखों वोटरों से चिटिठयों ओर एसएमएस के जरिए राय मांगी है कि क्या उसे सरकार बनानी चाहिए ?
इसमें कोर्इ संशय नहीं है कि आम आदमी पार्टी ने अपनी अलग पहचान बनार्इ है। यह आम राजनैतिक पार्टियों से अलग है। इस पार्टी ने अपनी पहचान मुख्यत: कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के विरोध की वजह से बनार्इ। अब धर्मसंकट ये है कि अगर यह कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनती है तो आम आदमी पार्टी के कांग्रेस विरोध पर सवाल उठेंगे। सरकार बनाए तो कैसे। ऐसे में आम आदमी के पार्टी पार्टी जनता की होते हुए भी जनता की सरकार नहीं बना पा रही।
अधिकतर जनता इस वä दोबारा चुनाव नही चाहती और अगर यदि श्आपश् ने सरकार बनाने से मना किया तो इसे जनता विरोधी माना जा सकता है । आप के सामने तो बडा संकट तब आएगा जब सरकार बनाने के बाद उसे अपने वायदे पूरे करने पडेगें, जिनमें से कर्इ व्यावहारिक नही है। लोकतंत्र को साफ सुथरा देखने वाले कर्इ हितैषी चाहते है कि आप एक अच्छी राजनैतिक पार्टी बने। इसके लिए इस पार्टी को भी राजनीति का सम्मान करना अनिवार्य है।अब आम आदमी की इस आम पार्टी को जनता के मुताबिक गम्भीर राजनीति की तरफ रूख कर लेना चाहिए।