केन्द्रुम योग: चंद्रमा के साथ या चंद्रमा के दोनों ओर कोई ग्रह न हो तो यह योग बनता है। परंतु कई करणों यह योग भंग भी होता है। यह योग चंद्रमा से बनता है जो मन का कारक है, जिससे जातक के मन मे शांति नहीं रहती और वह अकेलापन एवं अलगाव महसूस करता है। ऐसा जातक मानसिक रूप से अशांत और धन की कमी से हमेशा अवसाद से ग्रसित रहता है। यदि यह योग भंग ना हो तो इसे दरिद्र एवं शकट योग भी कहा जाता है। इस योग से बचने के लिए जातक को ज़रुरतमंद बच्चों को मुफ्त मे शिक्षा देनी चाहिए। प्रत्येक शुक्रवार को कनक धारा-स्रोत्र का विधि-विधान से पाठ करें और कन्या को भोज़न खिलाए।
केंद्राधिपति दोष: जब शुभ भावों केंद्र (1,4,7,10) के अधिपति शुभ ग्रह हों तो यह दोष बनता है। केंद्र भाव कुड़ली के आधार होते है और यही भाव जीवन मे लड़ने की शक्ति देते हैं। लग्न के स्वामी जब मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो केंद्र भावों मे शुभ ग्रहों का स्वामित्व होता है। अगर लग्न में मिथुन एवं कन्या राशि हो तो गुरु से दोष बनता है और लग्न मे धनु व मीन राशि हो तो बुध से दोष बनता है। जब गुरु की दशा आती है, तब जातक खुद को बंधन में बंधा मह्सूस करते है। व्यापार और शिक्षा में रुकावट आती है। बुध की दशा में जातक को व्यापार एवं शिक्षा में मनचाहे अवसर प्राप्त नहीं होते हैं। ऐसे लोगों को इन योग से बचने के लिए नियमित रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। सुबह उठकर किसी मंदिर अथवा धर्म स्थान में अपनी सेवा देनी चाहिए। गाय एवं ब्राह्मण को भोजन खिलाना चाहिए।