नई दिल्ली,एजेंसी-12 मार्च । अभी तक बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की जगह तय नहीं पायी है कि वह किस जगह से चुनाव लड़ेंगे। पार्टी में उन्हें लेकर तमाम बातें सामने आ रही हैं। जहां पार्टी मोदी को वाराणसी की सेफ सीट से लड़वाने को इच्छुक हैं वहीं इस सेफ सीट के मौजूदा एमपी डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने पार्टी के लोगों पर सीट को लेकर अपना गुस्सा दिखाया है। हालांकि इस बात को लेकर मीडिया में तमाशा बनते देख जोशी ने भले ही कह दिया कि वो वही करेंगे जो बीजेपी की चुनाव समिति कहेगी। लेकिन इस में कोई शक नहीं कि पार्टी के अंदर मोदी की चुनावी सीट को लेकर उथल-पुथल मची हुई है।
लेकिन इन सबके बीच में एक बड़ा सवाल यह है कि जब बीजेपी बड़े दावे के साथ कह रही है कि उनके पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर पूरे भारत में हैं। आधे से ज्यादा लोग मोदी को पसंद करते हैं तो फिर मोदी को सेफ सीट से चुनाव लड़वाने के लिए वह क्यों तूली हुई है? आखिर क्यों मोदी की सीट को लेकर कभी बनारस, कभी लखनऊ और कभी गांधी नगर को लेकर बहस हो रही है।
मालूम हो कि यह तीनों ही सीटें भाजपा की जीती हुईं हैं। जहां मुरली मनोहर जोशी, बनारस से एमपी हैं वहीं दूसरी ओर लखनऊ से लालजी टंडन एमपी हैं तो वहीं गुजरात के गांधीनगर से सांसद लाल कृष्ण आ़डवाणी सांसद हैं। इन तीनों ही जगह में से अगर किसी भी सीट पर मोदी लड़ते हैं तो तीनों ही वरिष्ठ नेताओं में से किसी एक नेता को अपनी सीट छोड़नी पड़ेगी। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बीजेपी में ऐसी स्थिति पैदा क्यों हो गयी है? आखिर जब मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है और उन्हें पसंद करने वाले आधे से ज्यादा देश के लोग हैं तो फिर क्यों भाजपा उन्हें सेफ सीट पर लड़वाने पर आमदा है। यही सवाल आज देश की जनता भाजपा से कर रही है। मोदी के दम पर चुनाव जीतने का ख्वाब देखने वाली भाजपा को तो मोदी को देश के किस भी कोने से लड़वाकर भारी बहुमत से जीतने का भरोसा होना चाहिए लेकिन वह ऐसा नहीं कर पा रही है। इस बारे में राजनैतिक समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि शायद इसके पीछे कारण यह है कि ऐसा भाजपा को लगता है कि अगर मोदी बनारस से खड़े होते हैं तो वह हिंदुत्व का नारा प्रबल कर सकती हैं और अपना ‘नमो-नमो’ और ‘रामलला’ का नारा बुलंद कर सकती है। या फिर वह मोदी को लखनऊ से लड़वाकर देश के आदर्श और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि वाराणसी बीजेपी के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है की सिर्फ़ मोदी के लड़ने से ही आस पास की 30-40 सीटों पर असर पड़ेगा और 30-40 सीट ही भाजपा को 272 का आंकड़ा पार करने में मदद करेंगे। खैर मामला अभी फंसा हुआ है,बीजेपी को अब 13 मार्च का इंतजार है जिस दिन बीजेपी चुनाव समिति की बैठक होगी जिसमें यह तय हो जायेगा कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा? लेकिन सोचने वाली बात यही है कि आखिर वरिष्ठ नेता महफूज सीटों की तलाश में माथापच्ची क्यों कर रहे हैं? आखिर क्यों मोदी की सीट के लिए किसी वरिष्ठ नेता से कुर्बानी की उम्मीद की जा रही है?