शिवानी निगम/खबर इंडिया नेटवर्क – आज स्त्री एक कुशल प्रबंधक की प्रतिभा के साथ कार्यक्षेत्र में भी अपनी भूमिका को पूरी र्इमानदारी व मेहनत से निभाती हुर्इ आसानी से देखी जा सकती है। वह बड़े से बड़े ओहदे पर बड़ी सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। कहावत कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है पुरानी पड़ चुकी है। आज अधिकांश परिवारों में सास-बहू ननंद-भौजार्इ देवरानी-जेठानी में गजब का स्नेह व सहयोगात्मक बर्ताव देखने को मिलता है। स्त्री ने अपने ऊपर लगाए गए बरसों के लांछन को मिटाया है। अब सास-बहू सीरियलो में ज्यादा लड़ती है असल जिंदगी में कम।
नारी की सफलता इसी से स्वयंसिद्व है कि वह सही अर्थो में सखी-सहधर्मिणी है। वह पति की हर परेशानी बांटने में सक्षम है। वह पत्नी बनकर सिर्फ सुख-सुविधाओ का लाभ नही उठाती बल्कि हर सुख-सुविधा जुटाने में बराबर की जिम्मेदारी लेती है और संघर्ष करती है।
आज जहां एक ओर स्त्री की दुर्दशा हत्या के घिनौने किस्से हैं वहीं दूसरी ओर बेटियों के जन्म पर गौरवानिवत होती और प्रसन्न होती मांऐ भी। कर्इ परिवार ऐसे भी हैं जिनकी इकलौती बेटी है या दो बेटियां हैं। वे माँ-बाप की लाड़ली हैं। अलबत्ता वह भी माता पिता की केयर करती हैं। ऐसे परिवार भी दिखार्इ दिये जिन्होंने बेटियाँ गोद ली हैं और बड़े ही लाड़-प्यार से उनका पालन-पोषण कर रहे हैं। लगभग हर सभ्य व सुरक्षित परिवार में बेटियो को भी ऊंची से ऊंची शिक्षा दिलवार्इ जा रही है। परिवारों में बेटियों की शादी से पूर्व उन्हें शिक्षित करने व आत्मनिर्भर बनाने की मानसिकता विकसित हुर्इ है। अब वर चुनने में अनिवार्य रूप से बेटियों की पसंद पूछी जाती है।
हालांकि महानगरों में उच्च शिक्षित युवतियों का छोटे-बड़े शहरो व गाँव से आकर रहना व नौकरी करना और अपनी पहचान बनाना थोड़ा मुशिकल जरूर है लेकिन लड़कियों ने इन मुशिकलातों का खूब सामना किया है। अपनी असिमता को बनाये रखते हुए वे बड़े आराम से देश तो क्या विदेश में भी बड़ी आसानी से रहती हैं पढ़ती हैं व नौकरी करती हैं।
आज की महिलाओं ने संपूर्ण आत्मविश्वास के साथ सही बात को सही तरीके से कहना सीख लिया है। उन्होंने घर के सुरक्षित कवच से बाहर निकलकर अभिव्यकित की स्वतंत्रता स्वंय हासिल की है। अगर तुलना की जाए पुरानी युवतियों से, तो आज की युवतियाँ अन्याय का विरोध करती है। और विरोध करने पर हो सकने वाले नुकसान या परिणामों से भी वे भयभीत नहीं होती।