नई दिल्ली,एजेंसी-16 जून। प्रयोगों की राजनीति से तौबा कर चुकी कांग्रेस पार्टी बदलाव के मुहाने पर खड़ी है। संगठन में बदलाव और नई टीम के साथ कांग्रेस एक बार फिर मंथन करने की तैयारी में है। बजट सत्र से पहले प्रस्तावित चिंतन शिविर में पार्टी गठबंधन की राजनीति छोड़ एक बार फिर अकेले चलने का बड़ा फैसला ले सकती है। राहुल गांधी के प्रयोगवादी राजनीति पर लगाम लग सकती है। साथ ही शीर्ष पर सोनिया गांधी की सक्रियता फिर बढ़ने की उम्मीद है। इस बीच लोकसभा चुनावों में हार के बाद नेतृत्व पर उठते सवाल और राज्यों में हो रही बगावत के बीच पार्टी आलाकमान ने संगठन को कसना शुरू कर दिया है। पार्टी एक बार फिर पारंपरिक राजनीति की ओर लौट रही है। इस क्रम में पार्टी राज्यों में परंपरागत जातीय समीकरण साधने में जुट गई है। संकेत ये भी हैं कि पार्टी के सहयोगी संगठनों में आंतरिक चुनावों की प्रक्रिया को विराम दे दिया जाएगा।
‘ओल्ड और न्यूगार्ड’ के बीच फंसी कांग्रेस पार्टी अब बदलाव के लिए तैयार है। लोकसभा में हुई अपमानजनक हार के बाद कांग्रेस एक बार फिर बुनियादी सिद्धांतों की ओर लौटती दिख रही है। नई पीढ़ी की अनुभवहीन जल्दबाजी और वरिष्ठ नेताओं में इससे उपजी उदासीनता से जर्जर हुए संगठन को कसने की पहल शुरू हो गई है। हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश से उठते बगावती स्वरों और राजनीतिक रूप से रेगिस्तान हो चुके उत्तर प्रदेश में न खत्म होने वाली गुटबाजी के बीच पार्टी ने इससे कड़ाई से निपटने के संकेत दिए हैं। प्रदेश में संगठन को लेकर दिल्ली की निर्भरता को सीमित करते हुए पार्टी ने यह भी संकेत दिए हैं कि राज्यों के मामलों में प्रदेश अध्यक्ष ही फैसला करेंगे। लोकसभा में दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्य सभा में गुलाब नबी आजाद को नेता और आनंद शर्मा की उपनेता के तौर पर नियुक्ति करके पार्टी पार्टी एक बार फिर अपने पुराने वोट बैंक की ओर लौटने के संकेत भी दिए हैं। संगठन में राहुल को लेकर उपजी नाराजगी और राहुल गांधी के आगे आकर नेतृत्व देने से इन्कार करने के बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी एक बार फिर पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णय लेती नजर आएंगी। हालांकि इस बीच राहुल न सिर्फ संगठन को अधिक समय देंगे, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रादेशिक नेतृत्व से खुद को और जोड़ने का काम करेंगे। इस काम में राहुल का सहयोग प्रियंका गांधी वाड़्रा करेंगी, जो विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी में जिम्मेदारी संभाल सकती हैं।
उधर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी में जवाबदेही न होने ओर इसे लागू करने की गाज उनके करीबियों पर ही गिरती नजर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक होने वाले बदलाव में अजय माकन, मधुसूदन मिस्त्री, दिग्विजय सिंह जैसे पार्टी महासचिवों को उनके प्रदेशों की जिम्मेदारी मिलेगी, मोहन प्रकाश, शकील अहमद को उनके प्रभार वाले राज्यों में होने वाले चुनावों के बाद नई जिम्मेदारी मिल सकती है। गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए राहुल के करीबियों को संगठन में अलग से समायोजित किया जाएगा।
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