नई दिल्ली,एजेंसी-29 अगस्त। साईं के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाते रहे शंकराचार्य फिर से इस मुद्दे पर विवाद के घेरे में आ गए हैं। 23 जून को शिर्डी के साईं के खिलाफ खोले गए मोर्चे पर विवाद पर इस बार धर्म संसद में साईं के खिलाफ पास किए गए प्रस्तावों ने बवाल खडा़ कर दिया है।
मंदिरों से साईं की मूर्ति को हटाने की बात ने साईं भक्तों को सबसे ज्यादा आक्रोशित किया है। यही नहीं, शंकराचार्य ने तो साईं को भगवान तो दूर उन्हें संत या गुरु मानने से भी इंकार कर दिया।
धर्म संसद में सांई पूजन पर रोक : इस नए विवाद की शुरुआत छत्तीसगढ़ के कवर्धा में धर्म संसद से हुई, जहां 13 अखाड़ों के प्रमुख ने साईं को भगवान मानने से इनकार कर दिया। यही नहीं, संतों ने सांई के खिलाफ विवादस्पद प्रस्ताव पास किए गए हैं जिसने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। धर्म संसद में संतों ने तय किया कि मंदिरों से साई की मूर्तियां हटाई जाएंगी और एक महीने के अंदर अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का भी प्रस्ताव पास किया गया है। संतों का मानना है कि साईं के भगवान होने का कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं हैं। धर्म संसद में संतों ने साईं को भगवान तो दूर, संत या गुरु मानने से भी इनकार कर दिया जिसने बड़े तौर पर इस मामले को तूल दिया है।
सांई भक्तों का फूटा गुस्सा : दूसरी तरफ धर्म संसद के इन फैसलों ने सांई भक्तों को आक्रोशित कर दिया है। इस पूरे विवाद से सबसे ज्यादा आहत सांई भक्त द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं शिरडी में एक साईं भक्त ने उनके खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने का मुकद्दमा भी दर्ज करा दिया है। ये भक्त शंकराचार्य के उस बयान से नाराज़ हैं, जिसमें उन्होंने साईं को हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक नहीं माना था और साईं को मुसलमान बताया था। सांई भक्त शंकराचार्य की दलीलों को पूरी तरह से गलत मानते हुए कहते हैं कि साईं के भक्तों में हर धर्म के लोग हैं। साथ ही कहते हैं कि देश धर्मनिरपेक्ष है और किसी भी जाति-धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है तो फिर 100 साल बाद सांई पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है?