नई दिल्ली, (एजेंसी) 25 सितम्बर । मंगलयान की सफलता से ऊंचे मनोबल और कद के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिका की धरती पर शुक्रवार को कदम रखेंगे, तब दुनिया के ताकतवर देशों के नेता उन्हें नई तकनीकी और सामरिक ताकत के रूप में देखेंगे।
इस सफलता को हासिल करने वाला भारत जहां पहला एशियाई देश है, वहीं पहले प्रयास में इस कामयाबी को हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बन चुका है। चीन, ऑस्ट्रेलिया सहित कई विदेशी ताकतों ने न सिर्फ इस पर बधाई दी, बल्कि इस सफलता का नोटिस भी लिया।
नतीजा यह कि अब विश्व समुदाय भारत को दूसरे नजरिये से देखेगा। मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने की इस महान वैज्ञानिक उपलब्धि से भारत का मान सामरिक दुनिया में बढ़ेगा। सबसे अहम बात यह है कि भारत का मंगलयान अमेरिकी सैटलाइट मावेन के मंगल की कक्षा में पहुंचने के दो दिन बाद पहुंचा, लेकिन इस पर मंगलयान का दस गुना खर्च हुआ। भारत ने मंगलयान पर करीब 450 करोड़ खर्च कर यह साबित किया कि ग्लोबल स्पेस मार्केट में भारत अब विकसित देशों से होड़ कर सकता है।
जैसे-जैसे अंतरिक्ष पर मानव समुदाय की निर्भरता बढ़ती जा रही है, कई छोटे विकासशील देश अपने सैटलाइट अंतरिक्ष में स्थापित करना चाह रहे हैं। अपना सैटलाइट पृथ्वी की कक्षा में छोड़ने के लिए उन्हें यूरोपीय, अमेरिकी, रूसी या चीनी अंतरिक्ष एजेंसियों की शरण में जाना पड़ता है, लेकिन अब भारत भी व्यावसायिक दर पर बाकी देशों के सैटलाइट छोड़ने वाला देश बनकर विकसित देशों से होड़ कर सकेगा। लेकिन इसके लिए भारत को अपने अंतरिक्ष केंद्रों में ढांचागत सुविधाओं का विस्तार करना होगा।
विश्व अंतरिक्ष बाजार में चीन ने पहले ही प्रवेश कर विकसित देशों के साथ होड़ शुरू भी कर दी है, लेकिन अब चीन के साथ भारत ने भी होड़ करने की क्षमता साबित कर दी है। फिलहाल भारत अपने अंतरिक्ष केंद्रों से साल में एक या दो अंतरिक्ष रॉकेट भेज सकता है, लेकिन दूसरे देशों के सैटलाइट छोड़ने का ऑर्डर लेने के लिए इसरो को कई स्पेस लॉन्च स्टेशन स्थापित करने होंगे।
इसके लिए भारी निवेश की जरूरत है, लेकिन इससे न केवल भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र का अरबों डॉलर का बड़ा बिजनेस हाथ लगेगा, बल्कि भारत में कुशल इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की भी मांग काफी बढ़ेगी।
आईसीबीएम छोड़ने की क्षमता भी दिखी:-
मंगल ग्रह तक अपने रॉकेट को भेजकर भारत ने यह क्षमता भी सिद्ध की है कि सैनिक दुनिया में भी भारत बड़ी सैन्य ताकतों के साथ कदमताल कर सकता है। मंगलयान जिस पीएसएलवी रॉकेट से छोड़ा गया है , उसी तकनीकी क्षमता के आधार पर भारत पृथ्वी के किसी भी कोने तक जाने वाली इंटर कॉन्टिनेंटल बलिस्टिक मिसाइल ( आईसीबीएम ) छोड़ सकता है।
अंतरिक्ष ताकत बनने में भारत रूस और फ्रांस जैसे देशों के सहयोग से इनकार नहीं कर सकता , लेकिन हाल तक अमेरिका ने भारत के अंतरिक्ष संगठन पर इसलिए प्रतिबंध लगाया हुआ था कि भारत इसकी बदौलत सैन्य ताकत भी बन सकता है।