भोपाल (एजेंसी) 01 नवम्बर । अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख और भोपाल गैस त्रासदी मामले में भगोड़ा करार दिए जा चुके वॉरेन एंडरसन की न्यूयॉर्क में मौत हो गई। 1984 में 2 दिसंबर की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट में गैस रिसने से करीब चार हजार लोगों की मौत हो गई थी और लाखों लोग प्रभावित हुए थे। इनके परिवारीजनों को आज भी इंसाफ का इंतजार है। लेकिन एंडरसन की मौत के साथ ही इंसाफ की उम्मीद भी खत्म हो गई।
मौत भी बनी राज बताया जा रहा है कि एंडरसन की मौत 29 सितंबर को ही हो गई थी। लेकिन खबर अब सामने आई है।
भोपाल में मना जश्न: यह शायद अपनी तरह की पहली ऐसी मौत होगी जिस पर लोगों ने एक साथ खुशी और गुस्से का इजहार किया। खुशी इस बात की कि हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार व्यक्ति आखिरकार दुनिया से उठ गया और गुस्सा इस बात का कि इतना बड़ा अपराधी अपनी आखिरी सांस तक कानून की पहुंच से दूर रहा। गैस पीडि़तों के बीच बरसों से काम कर रहे बाबूलाल गौर ने एंडरसन की मौत पर खुशी तो जाहिर नहीं की लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि बिना सजा पाए एंडरसन दुनिया से चला गया।
क्या हुआ था उस रात :
रात 9:00 बजे- आधा दर्जन कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइप लाइन साफ कर रहे थे।
10:00 बजे- भूमिगत टैंक नंबर 610 में पानी पहुंचने से रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। टैंकर का तापमान बढ़ गया और गैस बनने लगी।
10:30 बजे – वॉल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण गैस रिसाव शुरू हो गया।
देर रात 12:50 बजे – खतरे का सायरन बजना शुरू हो गया।
02:00 बजे – पहला गैस पीडि़त व्यक्ति हमीदिया अस्पताल पहुंचा। उसके मुंह से झाग आने लगा।
सुबह 04:00 बजे – पूरे शहर में गैस फैल चुकी थी। गहरी नींद में सोए हजारों लोग जहरीली गैस के मरीज बन चुके थे। इस बीच लगातार कोशिश के बाद रिसाव पर काबू पा लिया गया।
हाथ नहीं आया .
इस मामले में एंडरसन समेत नौ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकिए लौटने की शर्त पर एंडरसन को 2000 डॉलर के जमानत पर रिहा कर दिया गया। फरवरीए 1985 में अमेरिकी कोर्ट में भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ 3ण्3 बिलियन डॉलर का दावा ठोका। इसके बाद 1992 में कोर्ट द्वारा भेजे गए समन की बार.बार अनदेखी के बाद एंडरसन को भगोड़ा साबित कर दिया गया।
यह हुआ था
भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट ;एमआईसी के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मौत हो गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के अंदर करीब तीन.चार हजार लोग मारे गए थे। जबकि कई रिपोर्ट्स में 15 हजार लोगों के मारे जाने की बात कही गई। घोर लापरवाही के कारण गैस कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसोसायनाइड गैस का रिसाव हुआ था। मिथाइल आइसोसायनाइड के रिसाव ने न सिर्फ फैक्ट्री के आसपास की आबादी को अपने चपेट में लिया थाए बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर.दूर तक रहने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था। दो दिन तक फैक्ट्री से जहरीली गैसों का रिसाव होता रहा। फैक्ट्री के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे। आसपास की आबादी में इससे कई तरह की बीमारियां फैल गई थीं। सबसे बड़ी बात यह है कि भोपाल गैस कांड के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी भी मिथाइल गैस के प्रभाव से पीडि़त है और उसे कई खतरनाक बीमारियां विरासत में मिली हैं।